इमाम क़ाज़ी इयाज़ मालिकी अलैहिर्रहमा लिखते हैं :
एक रिवायत में है कि हुज़ूर ﷺ ने हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम से दरयाफ्त फरमाया कि क्या मेरी रहमत से तुम को भी कुछ हिस्सा मिला है? अर्ज़ की :
نعم، کنت اخشی العاقبة فامنت لثناء الله عزوجل علی بقوله "ذی قوۃ عند ذی العرش مکین مطاع، ثم امین" (التکویر:21،20)
हाँ, मैं अपने अंजाम वा आखिरत से डरता था, अल्लाह त'आला ने मेरी मद्ह में ये आयत -ए- करीमा "जो क़ुव्वत वाला है, मालिक -ए- अर्श के हुज़ूर इज़्ज़त वाला वहाँ उस का हुक्म माना जाता है, अमानतदार है" आप ﷺ पर नाज़िल फरमायी तो अब बे खौफ हूँ।
(انظر: الشفاء بتعریف حقوق المصطفی، ص58۔
و شفا شریف اردو، ص24، 25۔
و المواھب اللدنیة، ج3، ص170)
हमारे आक़ा ﷺ रहमतल्लुल आलमीन हैं और कोई ऐसा नहीं है जिसे आप ﷺ की रहमत से हिस्सा ना मिला हो।
जिस की दो बूँद है कौसरो सलसबील
है वो रहमत का दरिया हमारा नबी
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
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