नबीय्ये अकरम, नूरे मुजस्सम, सरकार -ए- मदीना ﷺ का ज़िक्र करना, खुदा का ज़िक्र करना है।
अल्लाह त'आला ने आप ﷺ के ज़िक्र को बुलंद किया है और अपना ज़िक्र क़रार दिया है।
हदीस -ए- क़ुदसी है, अल्लाह त'आला फरमाता है :
मैं ने ईमान का मुकम्मल होना इस बात पर मौक़ूफ कर दिया है कि (ए महबूब) मेरे ज़िक्र के साथ तुम्हारा ज़िक्र भी हो और मैने तुम्हारे ज़िक्र को अपना ज़िक्र ठहरा दिया है पस जिस ने तुम्हारा ज़िक्र किया उस ने मेरा ज़िक्र किया।
(الشفاء للقاضی عیاض المالکی)
क़ुरआन -ए- करीम में अल्लाह त'आला के ज़िक्र के साथ ज़िक्रे रसूल ﷺ के जलवे कई जगह नज़र आते हैं, चुनांचे इरशाद -ए- बारी है :
(1) तो ऐलान -ए- जंग सुन लो अल्लाह और उस के रसूल की तरफ से।
(البقرۃ:279)
(2) और जो हुक्म माने अल्लाह और उस के रसूल का।
(النساء:13)
(3) और जो अल्लाह और उस के रसूल की नाफरमानी करे।
(النساء:14)
(4) हुक्म मानो अल्लाह का और हुक्म मानो रसूल का।
(النساء:59)
(5) तो उसे अल्लाह और उस के रसूल के हुज़ूर रुजू करो।
(النساء:59)
(6) अल्लाह की उतरी हुई किताब और रसूल की तरफ आओ।
(النساء:61)
(7) और जो अल्लाह और उस के रसूल का हुक्म माने ।
(النساء:70)
(8) जिसने रसूल का हुक्म माना बेशक उस ने अल्लाह का हुक्म माना।
(النساء:80)
(9) और जो अपने घर से निकला अल्लाहो रसूल की तरफ हिजरत करता।
(النساء:100)
(10) ईमान रखो अल्लाह और उस के रसूल पर।
(النساء:136)
(11) और काफिर चाहते हैं कि अल्लाह से उस के रसूलों को जुदा कर दें।
(النساء:150)
(12) और जो अल्लाह और उस के रसूलों पर ईमान लाये।
(النساء:152)
(13) अल्लाह और उस के रसूलों पर ईमान लाओ।
(النساء:171)
(14) जो अल्लाह और उस के रसूल से लड़ते हैं।
(المائدہ:33)
(15) तुम्हारे दोस्त नहीं मगर अल्लाह और उस का रसूल और ईमान वाले।
(المائدہ:55)
(16) और जो अल्लाह और उस के रसूल और मुसलमानों को अपना दोस्त बनाये।
(المائدہ:56)
(17) आओ उसकी तरफ जो अल्लाह ने उतारा और रसूल की तरफ।
(المائدہ:104)
(18) तो ईमान लाओ अल्लाह और उस के रसूल बे पढ़े गैब बताने वाले पर।
(الاعراف:158)
(19) अल्लाह और उस के रसूल का हुक्म मानो।
(الانفال:1)
(20) ये इस लिये कि इन्होने अल्लाह और उस के रसूल से मुखालिफत की।
(الانفال:13)
(21) और जो अल्लाह और उस के रसूल से मुखालिफत किये।
(الانفال:13)
(22) अल्लाह और उस के रसूल का हुक्म मानो।
(الانفال:20)
(23) ए ईमान वालों! अल्लाह और उस के रसूल के बुलाने पर हाज़िर हो जाओ।
(الانفال:24)
(24) अल्लाह और रसूल से दगा ना करो।
(الانفال:27)
(25) तो इसका पाँचवा हिस्सा खास अल्लाह और उस के रसूल का है.........अल आयत।
(الانفال:41)
(26) बेज़ारी का हुक्म सुनाना है अल्लाह और उस के रसूल की तरफ से।
(التوبہ:1)
(27) अल्लाह और उस के रसूल की तरफ से तमाम लोगों की तरफ बड़े हज के दिन ऐलान है।
(التوبہ:3)
(28) अल्लाह बेज़ार है मुशरिकों से और उस का रसूल।
(التوبہ:3)
(29) मुशरिकों के लिये अल्लाह और उस के रसूल के पास कोई अहद क्यों कर होगा।
(التوبہ:7)
(30) अल्लाह और उस के रसूल और मुसलमानों के सिवा किसी को अपना राज़दार ना बनायेंगे।
(التوبہ:16)
(31) ये चीज़ें अगर तुम्हें अल्लाह और उस के रसूल से ज़्यादा प्यारी हों।
(التوبہ:24)
(32) और हराम नहीं मानते उस चीज़ को हराम किया अल्लाह और उस के रसूल ने।
(التوبہ:29)
(33) ये कि वो अल्लाह और उस के रसूल से मुन्किर हुये।
(التوبہ:54)
(34) और क्या ही अच्छा होता अगर वो इस पर राज़ी होते और जो अल्लाह और उस के रसूल ने इन को दिया।
(التوبہ:59)
(35) और कहते हैं हमें अल्लाह काफी है अब देता है अल्लाह हमें अपने फ़ज़्ल से और उस का रसूल।
(التوبہ:59)
(36) और अल्लाहो रसूल का हक़ ज़्यादा था कि उसे राज़ी करते।
(التوبہ:62)
(37) जो मुखालिफत करे अल्लाह और उस के रसूल की।
(التوبہ:63)
(38) और अल्लाहो रसूल का हुक्म मानें।
(التوبہ:71)
(39) और उन्हें क्या बुरा लगा यही ना कि अल्लाहो रसूल नें उन्हें गनी कर दिया।
(التوبہ:74)
(40) इस लिये कि वो अल्लाह और उस के रसूल के मुन्किर हुये।
(التوبہ:80)
(41) बेशक वो अल्लाह और रसूल से मुन्किर हुये।
(التوبہ:84)
(42) वो जिन्होनें अल्लाहो रसूल से झूठ बोला था।
(التوبہ:90)
(43) जब कि अल्लाह और उस के रसूल के खैर खा रहें।
(التوبہ:91)
(44) और अब अल्लाहो रसूल तुम्हारे काम देखेंगे।
(التوبہ:94)
(45) और अब अल्लाहो रसूल तुम्हारे काम देखेंगे।
(التوبہ:105)
(46) और (ये मस्जिद -ए- ज़र्रार) उस के इंतिजार में हैं जो पहले से अल्लाह और उस के रसूल का मुखालिफ है।
(التوبہ:107)
(47) हम ईमान लाये अल्लाह और उस के रसूल पर।
(النور:47)
(48) और जब अल्लाह और उस के रसूल की तरफ बुलाये जायें।
(النور:48)
(49) या ये डरते हैं अल्लाहो रसूल इन पर ज़ुल्म करेंगे।
(النور:50)
(50) जब अल्लाह और रसूल की तरफ बुलाये जायें कि रसूल इन में फैसला फ़रमाये।
(النور:51)
(51) और जो हुक्म माने अल्लाह और उस के रसूल का।
(النور:52)
(52) तुम फ़रमाओ कि हुक़्म मानो अल्लाह और हुक़्म मानो रसूल का।
(النور:54)
(53) ईमान वाले तो वही हैं जो अल्लाह और उस के रसूल पर यक़ीन लाये।
(النور:62)
(54) जो अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान लाते है।
(النور:62)
(55) हमे अल्लाहो रसूल ने वादा न दिया।
(الاحزاب:12)
(56) बोले ये है वो जो हमे वादा दिया था अल्लाह और उस के रसूल ने ।
(الاحزاب:22)
(57) और सच फरमाया अल्लाह और उस के रसूल ने।
(الاحزاب:22)
(58) अगर तुम अल्लाह और उस के रसूल को चाहती हो।
(الاحزاب:29)
(59) और जो तुम में फ़रमा बरदार रहे अल्लाह और उस के रसूल की।
(الاحزاب:31)
(60) और अल्लाह और उस के रसूल का हुक्म मानो।
(الاحزاب:32)
(61) जब अल्लाहो रसूल कुछ हुक्म फ़रमा दे।
(الاحزاب:36)
(62) और जो हुक्म न माने अल्लाह और उस के रसूल का।
(الاحزاب:36)
(63) जिसे अल्लाह ने नेमत दी और तुमने उसे नेमत दी।
(الاحزاب:57)
(64) बेशक जो इज़ा देते है अल्लाह और उस के रसूल को।
(الاحزاب:66)
(65) हाय किसी तरह हम ने अल्लाह का हुक्म माना होता और रसूल का हुक्म माना होता।
(الاحزاب:66)
(66) और जो अल्लाह और उस के रसूल की फ़रमा बरदारी करे।
(الاحزاب:71)
(67) अल्लाह का हुक्म मानो और रसूल का हुक्म मानो।
(محمد:33)
(68) ताकि तुम लोग अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान लाओ।
(الفتح:9)
(69) वो जो तुम्हारी बैअत करते है वो अल्लाह ही से बैअत करते हैं
(الفتح:10)
(70) और जो ईमान ना लाये अल्लाह और उस के रसूल पर।
(الفتح:13)
(71) और जो अल्लाह और उस के रसूल का हुक्म माने।
(الفتح:17)
(72) अल्लाह और उस के रसूल से आगे ना बढ़ो।
(الحجرات:1)
(73) और अगर तुम अल्लाह और उस के रसूल के फरमा बरदारी करोगे
(الحجرات:14)
(74) ईमान वाले तो वही हैं जो अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान लाये।
(الحجرات:15)
(75) और वो जो अल्लाह और उस के सब रसूलो पर ईमान लाये।
(الحدید:19)
(76) ये इस लिए कि तुम अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान रखो।
(المجادلة:4)
(77) बेशक जो मुखालिफत करते है अल्लाह और उस के रसूल की।
(المجادلة:5)
(78) और अल्लाह और उस के रसूल के फ़रमा बरदार रहो।
(المجادلة:13)
(79) बेशक वो जो मुखालिफत करते है अल्लाह और उस के रसूल की।
(المجادلة:20)
(80) अल्लाह लिख चुका कि ज़रूर मैं ग़ालिब आऊंगा और मेरे रसूल।
(المجادلة:21)
(81) और जिन्होंने अल्लाह और उस के रसूल की मुखालिफत की।
(المجادلة:22)
(82) ये इस लिए कि वो अल्लाह और उस के रसूल से जुदा रहे।
(الحشر:40)
(83) (वो गनीमत) अल्लाह और उस के रसूल की है।........अल आयत
(الحشر:70)
(84) और अल्लाहो रसूल की मदद करते है।
(الحشر:80)
(85) ईमान रखो अल्लाह और उस के रसूल पर।
(الصف:11)
(86) और इज़्ज़त अल्लाह और उस के रसूल और मुसलमानों के लिए ही है।
(المنافقون:8)
(87) तो ईमान लाओ अल्लाह और उस के रसूल पर।
(التغابن:8)
(88) और अल्लाह का हुक्म मानो और रसूल का हुक्म मानो।
(التغابن:12)
(89) और जो अल्लाह और उस के रसूल का हुक्म माने।
(الجن:23)
(ملخصاً: کمال و جمال حبیب، ص42 تا 49)
ज़िक्रे ख़ुदा जो उन से जुदा चाहो नजदियो
वल्लाह ज़िक्रे हक़ नही कुंजी सक़र की है
इमाम -ए- अहले सुन्नत फरमाते है कि ए नजदियो! अगर तुम ये चाहते हो कि हुज़ूर के ज़िक्र को ख़ुदा के ज़िक्र से जुदा कर दिया जाए तो खुदा की कसम! ऐसा ज़िक्र ख़ुदा का ज़िक्र ना कहला सकेगा बल्कि (वो ज़िक्र) जहन्नम की चाबी साबित होगा और तुम्हे दोज़ख में गिरा कर छोड़ेगा।
(انظر: شرح کلام رضا، ص590)
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
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