बयान किया जाता है के हुज़ूर गौसे पाक अलैहिर्रहमा का एक धोबी था, जब उस का इंतेक़ाल हुआ तो क़ब्र में फिरिश्तो ने उस से सवाल किए जैसा के सब से करते है।
उस ने हर सवाल के जवाब में कहा के "मैं गौसे पाक का धोबी हूँ" और उसे बख्श दिया गया।
इस रिवायात के मुताल्लिक़ फ़क़ीह -ए- मिल्लत, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी रहिमहुल्लाह लिखते है के ये रिवायात बे अस्ल है, इसका बयान करना दुरुस्त नहीं लिहाज़ा जिस ने इसे बयान किया वो इस से रुजू करे और आईन्दा इस रिवायात के ना बयान करने का अहेद करे, अगर वो ऐसा ना करे तो किसी मोअतमद किताब से इस रिवायात को साबित करे
(انظر: فتاوی فقیہ ملت، کتاب الشتی، ج2، ص411، ط شبیر برادرز لاہور، س2005ء)
शारेहे बुखारी, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शरीफ उल हक अमजदी अलैहिर्रहमा इस रिवायात के मुताल्लिक़ लिखते है के ये हिकायत ना मैंने किसी किताब में देखी है और ना किसी से सुनी है
अहादीस में तसरीह है के अगर (मरने वाला) मोमिन होता है तो क़ब्र के तीनों बुनियादी सवालो का जवाब दे देता है, मुनाफ़िक़ या काफिर होता है तो ये कहता है के हाय हाय मैं नहीं जानता लिहाज़ा ये रिवायात हदीस के खिलाफ है मगर ये बात हक़ है के हज़रात -ए- औलिया -ए- किराम, अइम्मा -ए- दीन, बुज़ुर्गाने दीन अपने मुरीदीन और मुताल्लिक़ीन की क़ब्रो में नकिरैंन के सवालात के वक़्त तशरीफ़ लाते है और जवाब में आसानी पैदा करते है।
(ملخصاً و ملتقطاً: فتاوی شارح بخاری، کتاب العقائد، ج2، ص125، ط دائرۃ البرکات گھوسی، س1433ھ)
मुफ्ति -ए- आज़म हॉलैंड, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अब्दुल वाजिद क़ादरी रहिमहुल्लाह मज़कूरा रिवायत के बारे में लिखते है के ग़ालिबन यही वाकिया या इस के मिस्ल "तफरीहुल खातिर" में है लेकिन इस के बयान में तहक़ीक़ ज़रूरी है, यूँ ही मुबहम तौर पर बिला तौजीह के बयान करना खिलाफ -ए- एहतियात है जिससे बचना ज़रूरी है
(انظر: فتاوی یورپ، کتاب الصلوٰۃ، ص220)
हज़रत मौलाना मुहम्मद अजमल अत्तारी साहब इस रिवायात को नक़ल करने के बाद फ़क़ीह -ए- मिल्लत का क़ौल बयान करते है के रिवायात -ए- मज़कूरा बे अस्ल है, इस का बयान करना दुरुस्त नहीं लिहाज़ा जिस ने इसे बयान किया वो इस से रुजू करे.....अलख़
(انظر: امام الاولیاء، ص70، ط مکتبہ اعلی حضرت لاہور، س1433ھ)
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
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