कोई खुश कोई गमगीन

हुज़ुर -ए- अकरम ﷺ की आमद पर सिवाए कुछ बदनसीबों के सभी खुश हैं और खुशीया मना रहे हैं।

निसार तेरी चहल पहल पर हज़ार ईदें रबीउल अव्वल
सिवाए इबलीस के जहान में सभी तो खुशीया मना रहे हैं!

कोई आमिना के लाल ﷺ की मुहब्बत में उनको याद कर के खुश हो रहा है तो किसी के लिए ये यादें तकलीफ़ का सबब बनी हुई हैं। ये भी मेरे आका ﷺ का जलवा है के आप ﷺ कि फ़ूल सी ख़ुबसूरत यादें गद्दारों के दिल में कांटा बन कर चुभ रही है।

आला हज़रत क्या खूब फ़रमाते हैं,
कोई जान बस के महक रही किसी दिल में इससे ख़टक रही
नहीं इसके जलवे में यक रही कहीं फ़ुल है कहीं खार है

मेरे इमाम फ़रमाते हैं के किसी ने हुज़ूर -ए- अकरम ﷺ की मुहब्बत को अपनी जान में बसाया हुआ है और आपकी यादे वफ़ादारों के दिलों में जान बन कर महक रही है और कुछ वो बदबख्त हैं के जिनको इससे तकलीफ़ हो रही है यानी आपके जलवे एक काम नहीं करते बल्कि दो काम करते हैं, वफ़ादारों को आपकी यादों से सुकून हासिल होता है और गद्दारों को इज़ा पहुंचती है।

अ़ब्दे मुस्तफ़ा

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