हसनैन करीमैन की शानो अज़मत बयान करनी हो या फारूक़ -ए- आज़म का इश्के रसूल, दोनों के लिये एक रिवायत कसरत से बयान की जाती है जो कुछ यूँ है :-
एक मर्तबा हसनैन करीमैन और फारूक़ -ए- आज़म के बेटे बचपन में साथ मिलकर खेल रहे थे कि अचानक किसी बात को लेकर लड़ायी हो जाती है! बातों ही बातों में इमाम हुसैन रदिअल्लाहू त्आला अन्हु ने फारूक़ -ए- आज़म के शहज़ादे से फरमाया कि "तू मेरा गुलाम तेरा बाप मेरे नाना का गुलाम"
ये सुनकर हज़रते उमर फारूक़ रदिअल्लाहू त्आला अन्हु के साहबज़ादे को बुरा लगा और वो इस बात की शिकायत करने के लिये अपने वालिद के पास चले गये।
वालिद साहब से कहा की हसनैन मुझे ऐसा ऐसा कहते है।
हज़रते उमर फारूक़ रदिअल्लाहू त्आला अन्हु ने अपने बेटे से फरमाया कि जाओ और उनसे ये बात लिखवाकर ले आओ, चुनान्चे इब्ने उमर ने हसनैन करीमैन से कहा कि आपने जो कहा है उसे कागज़ पर लिख दीजिये
इमाम हुसैन रदिअल्लाहू त्आला अन्हु ने वही बात लिख भी दी।
जब हज़रते उमर फारूक़ रदिअल्लाहू त्आला अन्हु के हाथ में वो कागज़ दिया गया तो आप उसे चूमने लगे और बहुत खुश हुए, फिर आपने बेटे से फरमाया कि बेटा अब मुझे मैदान -ए- हश्र का कोई खौफ नहीं क्युंकि मुझे आले रसूल ने रसूलुल्लाह का गुलाम लिख दिया है, इस चिठ्ठी को मेरे कफन मे रख देना ताकि मुनकर नकीर मुझसे सवालात ना करें, फिर आपने अपने बेटे को नसीहत करते हुए हसनैन करीमैन के फज़ाइल बताये और उनकी गुलामी करने का हुक्म दिया।
ये वाक़िया मुख्तलिफ अल्फाज़ में बयान किया जाता है।
ये वाक़िया इतना मशहूर है कि अक्सर मुक़र्रिरीन इसे बयान करते हैं।
हमने किताबों में इसे तलाश किया लेकिन हमें नहीं मिला, इसके बर अक्स जो मिला वो पेशे खिदमत है :-
हज़रत अल्लामा मुफ्ती शाह मुहम्मद अजमल क़ादरी रहीमहुल्लाह से इसी वाक़िये के मुतल्लिक सवाल किया गया कि ये वाक़िया सहीह है ये गलत? साइल ने ये भी लिखा है कि इस वाक़िये पर सूफी अज़ीज़ अहमद साहब बरेलवी और चन्द उल्मा ने एतराज़ किया है
आपने जवाब में तहरीर फरमाया:-
ये वाक़िया किसी अरबी की मुअतबर व मुस्तनद किताब में मेरी नज़र से नही गुज़रा तो यक़ीन के साथ ना इसको सहीह कहा जा सकता है ना गलत।
(فتاوی اجملیہ، ج4، ص629، ط شبیر برادرز لاہور، س2005ء)
अ़ब्दे मुस्तफ़ा कहता है कि जो हज़रात इस रिवायत को बयान करते हैं उन पर लाज़िम है कि हवाला भी बयान करें और किसी भी रिवायत को बयान करने से पहले इस बात को मद्दे नज़र रखें कि सिर्फ मशहूर होने की वजह से किसी रिवायत को बयान करना दुरुस्त नहीं।
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
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