बारह साल पहले डूबी हुई बारात 

चन्द किताबो में हुज़ूर सय्यिदुना गौसे आज़म रदिअल्लाहु त'आला अन्हु की एक करामात का ज़िक्र मिलता है के आपने 12 साल पहले डूबी हुई बारात को वापस निकाल दिया। 
ये रिवायात अवाम -ओ- खवास में बहुत मशहूर है लिहाज़ा मुकम्मल वाकिया लिखने की ज़रुरत नहीं। 

इस रिवायात पर गुफ़्तगू करते हुए खलीफा -ए- आलाहज़रत, हज़रत अल्लामा सय्यद दीदार अली शाह अलैहिर्रहमा फरमाते है के हुज़ूर गौसे आज़म की करामात दर्जा -ए- तवातुर को पहुची हुई है जैसा के इमाम याफई ने लिखा है के "आपकी करामात मुतवातिर या तवातुर के करीब है और उलमा के इत्तेफ़ाक़ से ये अम्र मालूम है के आपकी मानिन्द करामात का ज़ुहुर आपके बगैर आफाक के मशाइख में से किसी से ना हुआ"
मगर ये बारात वाली रिवायात किसी मोतबर ने नहीं लिखी लेकिन इससे ये लाज़िम नहीं आता के हज़रते गौसे पाक इस दर्जे के ना थे 
अक्सर मिलाद ख्वां (मुकर्रिरीन) वाकिफ ना होने की वजह से मुहमल रिवायात औलिया व अम्बिया की तरफ मंसूब कर देते है और समझते है के अगर ये यहाँ ग़लत है तो भी उनकी तारीफ हमने पूरी कर दी, ये सवाब की तवक़्क़ो भी करते है, खैर ख़ुदा इन पर रहम करे।

हज़ारो करामात औलियाउल्लाह और असहाब -ए- रसूल अलैहिस्सलाम से ज़ाहिर ना हुई तो क्या झूटी रिवायात कह देने से उनका रुतबा बढ़ जायेगा? हरगिज़ नहीं
असहाब -ए- रसूल तमाम गौसो क़ुतुब -ओ- औलिया से अफ़ज़ल है और तहक़ीक़ से साबित है के औलियाउल्लाह की करामात अक्सर असहाब से ज़्यादा है, बहरहाल ये रिवायात किसी मोतबर ने नहीं लिखी और इमकान -ए- अक़्ली से कोई अम्र यक़ीनी नहीं हो सकती 

(ملخصاً: فتاوی دیداریہ، ص45)

इमाम -ए- अहले सुन्नत, आलाहज़रत रहिमहुल्लाह से जब इस रिवायात के मुताल्लिक़ सवाल किया गया तो आपने फ़रमाया के अगरचे ये रिवायात नज़र से किसी किताब में न गुज़री लेकिन ज़ुबान पर मशहूर है और इस में कोई अम्र खिलाफ -ए- शरह नहीं लिहाज़ा इस का इन्कार ना किया जाये। 

(انظر: فتاوی رضویہ، ج29، ص630، ط رضا فاؤنڈیشن لاہور، س1426ھ)

मालूम हुआ के इस रिवायात का कोई मोतबर व मुस्तनद माखज़ मौजूद नहीं है और एक पहलु ये है के बक़ौल इमाम -ए- अहले सुन्नत इस रिवायात का इन्कार भी न किया जाये लेकिन फिर भी हम कहते है के ज़्यादा मुनासिब यही है के ऐसी रिवायात को बयान करने से परहेज़ किया जाये। हज़रते गौसे आज़म रदिअल्लाहु त'आला अन्हु के फ़ज़ाईल बयान करने के लिए दीगर सहीह रिवायात को शामिल -ए- बयान किया जाये। 

अ़ब्दे मुस्तफ़ा

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