हज़रते सैय्यिदुना अबु हुरैरा रदिअल्लाहु त'आला अन्हु बयान करते हैं कि नबी -ए- करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया :
उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्ज़ा -ए- क़ुदरत में मुहम्मद की जान है! तुम लोगों पर ज़रूर एक दिन ऐसा आयेगा कि तुम मुझे नहीं देख सकोगे और मेरी ज़ियारत करना तुम लोगों के नज़दीक अहल (घर वालों) और माल से ज़्यादा महबूब होगा।
(صحیح مسلم، باب فضل النظر الیہ ﷺ و تمنیه، ح6008)
अल्लामा खिताबी लिखते हैं कि (हुज़ूर के विसाल के बाद) बाज़ सहाबा ने (तो यहाँ तक) कहा कि रसूलुल्लाह ﷺ की तदफीन -ए- मुबारक के बाद हम खुद अपने आपको अजनबी लगते थे।
(شرح صحیح مسلم للسعیدی، جلد سادس، کتاب الفضائل، ص828، ملتقطاً)
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
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