बड़ी मस्जिद और कम नमाज़ी 

हज़रते सय्यिदुना अनस रदीअल्लाहु त'आला अन्हु बयान करते हैं के नबीये करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया :

लोगों पर एक ऐसा भी ज़माना आएगा के जब वो मसाजिद की तामीर में एक दूसरे के सामने फख्र का इज़हार करेंगे और उन मे से थोड़े लोग इन्हें (यानी मसाजिद को नमाजो से) आबाद करेगे।

(صحیح ابن خزیمہ، ج2، باب کراھة التباھی فی بناء المساجد... الخ، ر1321، ط شبیر برادرز لاہور)  

हुज़ूर ﷺ ने जो कुछ इरशाद फरमाया वो हर्फ़ बा हर्फ़ हक है और आज हम अपनी आंखो से इस का मुशाहिदा कर रहे हैं। 
आलीशान मसाजिद तामीर कर दी गयी हैं, एक मर्तबा मे हज़ारो बल्क़ि कई जगह तो लाखो लोग नमाज़ अदा कर सकते है लेकिन नमाज़ पढ़ने वाले गिने चुने लोग हैं। 
फजर की नमाज़ मे बाज़ मकामात पर कभी कभार ऐसा भी होता है के इमाम और मो'ज्जिन के इलावा तीसरा कोई नही पहुँचता। 
मसाजिद की तामीर मे एक दूसरे के सामने फख्र का इज़हार तो यूँ किया जाता है जैसे इसी के मुताबिक़ हमे आखि़रत मे आला दर्जा दिया जाना है। 

अल्लाह त'आला हमे मसाजिद को आबाद करने की तौफीक अता फरमाए। 

अब्दे मुस्तफ़ा

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