रिश्ता जोड़ दें या फिर तोड़ दें?

इरशादे बारी त'आला है :

وَ یَقْطَعُوْنَ مَاۤ اَمَرَ اللّٰهُ بِهٖۤ اَنْ یُّوْصَلَ وَ یُفْسِدُوْنَ فِی الْاَرْضِۙ اُولٰٓىٕكَ لَهُمُ اللَّعْنَةُ وَ لَهُمْ سُوْٓءُ الدَّارِ (الرعد:25)

"और जिसे जोड़ने का अल्लाह ने हुक़्म फ़रमाया है उसे काटते हैं और ज़मीन में फ़साद फैलाते हैं उनके लिए लानत ही है और उनके लिए बुरा घर है"

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया :
जिस गुनाह की सज़ा दुनिया में भी जल्द ही दे दी जाये और उसके लिए आखिरत में भी अज़ाब रहे वो बगावत और क़तअ़ रहमी से बढ़ कर नहीं (यानी ये गुनाह यहाँ और आखिरत दोनों में अज़ाब का सामान है)

( ترمذی، کتاب صفۃ القیامۃ، ۴/ ۲۲۹، الحدیث: ۲۵۱۹)

यानी कि ऐसे कितने लोग हैं जो रिश्तो में दरार पैदा करने की कोशिश करते हैं और कुछ ऐसे हैं जो आपसी रिश्तेदारों में ऐसे मशवरे पेश करते रहते हैं जिनसे एक अच्छा काम बनते बनते रुक जाता है वो इस बात का थोड़ा भी ख्याल नहीं करते कि उनके मशवरे इस्लाह के नाम पर रिश्ते जोड़ने का नहीं तोड़ने का काम कर रहे हैं 
दूसरे वो है जो उनकी बातों को पत्थर की लकीर समझ कर रिश्तों को जोड़ने वाले अ़मल से दूरी इख्तियार कर लेते हैं।

हकीम उल उम्मत हज़रत अ़ल्लामा मुफ्ती अहमद यार खान नईमी रहमतुल्लाह अ़लैह एक हदीस के तहत फ़रमाते हैं कि मुसलमानों से अच्छा गुमान रखना उन पर बदगुमानी ना करना ये भी अच्छी इबादत में से एक इबादत है।

(مرآۃ المناجیح، ٦٢١/٦)

एक मर्तबा हज़रत अबू हुरैरा रदिअल्लाहु तआला अ़न्हु अहादीस मुबारक बयान कर रहे थे तो फ़रमाया : 
वो शख्स जो रिश्तेदारी तोड़ने वाला हो वो हमारी महफिल से उठ जाये!
एक नौजवान उठकर अपनी फूफी के यहाँ गया और कई साल पुराना झगड़ा खत्म किया और फूफी को राजी कर लिया।

(الزواجر، قطع الرحم، ١٥٣/٢)

रिश्तेदारी एक बहुत प्यारा अहसास है जिसे महसूस करने की ज़रूरत है ज़रा-ज़रा सी बातों पर रिश्ते की डोर तोड़ देना दुरुस्त नहीं है इससे जहां इत्तिहाद पर फ़र्क़ पड़ता है वहीं कई दिल भी टूटते हैं जो कि बहुत बुरी बात है। 

रिश्ते कीजिये, रिश्तेदारों से अच्छी तरह पेश आयें और यही दीने इस्लाम का मिजाज़ भी है किसी को अहसासे कमतरी का शिकार ना होने दीजिये और जोड़ने का काम कीजिये, ना कि तोड़ने का।
इस दुनिया में अकेले तो किसी ने रहना नहीं फिर क्यों हम तोड़ने का काम करें आज हम ऐसा करेंगे तो कल ज़रूर हमें इसका जवाब और हिसाब देना होगा।

अल्लाह त'आला हमें रिश्तो की अहमिय्यत को समझने और रिश्ते जोड़ने की तौफीक़ दे।

अल्लाह हम मुसलमानों को एक जिस्म की तरह मुत्तहिद बनाये। रब्बे क़दीर अपने नबी उनकी अज़्वाज और सहाबा -ए- किराम के दरमियान क़ाइम होने वाली प्यारी रिश्तेदारी के सदक़े हमें जोड़ने वालों की सफ़ में रखें और तोड़ने के गुनाह से बचाये।

दुख्तर ए मिल्लत (रुक्न अ़ब्दे मुस्तफ़ा ऑफ़िशियल)

Post a Comment

Leave Your Precious Comment Here

Previous Post Next Post