शैख अबू बकर वर्राक़ रहीमहुल्लाह ने एक रोज़ अपनी मजलिस में हाज़िर मुरीदीन से फरमाया :
ऐ लोगों! तुम्हें बड़ी बशारत और उम्दा करामत मुबारक हो, वो ये है कि नबी -ए- करीम ﷺ किसी भी हाल में और किसी भी इज़्ज़तो जलाल वाले मक़ाम पर तुम को भूले नहीं।
अगर आप ﷺ ने एक लम्हे के लिये भी तुम्हें भूलना होता तो जब आप मक़ाम -ए- हैबत व जलाल में (शबे मेराज़) अल्लाह त'आला के हुज़ूर हाज़िर थे तो उस वक़्त भूल जाते (मगर) आप ﷺ ने उस वक़्त भी तुम पर शफक़त करते हुये फरमाया "अस्सलामु अलइना" हम सब पर सलाम हो।
(الفتوحات الربانیہ علی الاذکار النواویہ، ج2، ص221 بہ حوالہ فتاوی منصوریہ، ج1، ص20)
हमें भी चाहिये कि अपने नबी को हमेशा याद करें, कोई लम्हा उन की याद से खाली ना हो।
शैख इमाम अहमद रज़ा रहीमहुल्लाह फरमाते हैं :
जो ना भूला हम गरीबों को रज़ा
याद उस की अपनी आदत कीजिये
अब्दे मुस्तफ़ा
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