आप को कौन सी किताब हिन्दी में चाहिये?


कई लोग हमारे पास आते हैं के फुलां फुलां  किताब हिन्दी कर दीजिये, हमारी उनसे गुज़ारिश है के पहले काम को समझिये उस के बाद आखिर में हमारी कुछ बातों पर गौर कीजियेगा। 

देखें ये इतना आसान काम भी नहीं है के किसी किताब को फौरन हिन्दी में कर दिया जाए, इस में बहुत मेहनत लगती है जिसकी थोड़ी तफसील कुछ यूं है के अगर कोई बंदा तेज़ रफ्तार में टाइपिंग करता है तो एक दरमियाना सफे (पेज)  को कम से कम 6-7 मिनट में टाइप कर पाएगा और अगर सफहा बड़ा हुआ या उसमे शब्द ज्यादा हुए तो 9-10 मिनट भी लग जाते हैं फिर किसी सफहे में अरबी इबारात वगैरह टाइप करनी होती है फिर पूरे पेज पर नज़रे सानी यानी एक सफहे में 8 मिनट मान कर चलें तो सिर्फ 8  सफहे करने में 1 घंटे से ज्यादा लगते हैं, अब अगर कोई रोजाना 3-4 घंटे लगतार टाइपिंग करता है तो कितनी कर पाएगा? और अब आप ही अंदाजा लगा लिजिये के एक किताब कितने दिनों में टाइप होगी?


अब चलिये टाइपिंग हो गयी, इस से आगे बढ़ते हैं, उस की कम्पोजिंग करना यानि किताबी सांचे में ढालना फिर उसके लिए कवर डिज़ाइन करना और एक फाइनल सॉफ्ट कॉपी तैयार करना काफी वक्त लेता है, जो ये काम करते हैं वो अच्छी तरह समझते हैं पर जो नहीं जानते वो इसे हमारे देहात के मुताबिक "दाल भात" समझते हैं (यानी ये बहुत आसान है)

इसमें मज़ीद तफसीलात भी हैं जो बारीक हैं लिहाज़ा उन्हें यहां बयान नहीं किया गया है के सब समझ नहीं सकते। फकत मोटी मोटी बातें सामने रखी गई हैं अब आखिर में आप से अर्ज़ है कि अगर आप किसी किताब की फरमाइश करते हैं तो अच्छी बात है लेकिन सिर्फ फरमाइश करना काफी नहीं काम भी करें और हमारी मदद करें ताकि आपकी फरमाइश पूरी की जा सके। हम जानते हैं कि वो फकत आपकी फरमाइश नहीं बल्कि कई लोगों की है और काम हो जाने के बाद कई लोग उससे फायदा उठाएंगे और हम भी यही चाहते हैं कि यह काम किया जाए लेकिन वसाइल और ज़राऐ महदूद हैं हम पहले से ही कई किताबों पर काम कर रहे हैं और हर किसी की फरमाइश पूरी नहीं कर सकते

लिहाज़ा आपको भी साथ देना होगा और आप जिस किताब को हिन्दी में करना चाहते हैं तो "खुद हिंदी में लिख कर हमें भेज दें" बाकी पब्लिश करने का काम हमारा होगा और अगर ये नहीं कर सकते तो "किसी से टाइप करवा दे" और फिर हम भेज दें और अगर ये भी नहीं कर सकते तो हमारे पास उजरत पर काम करने वाले कई लोग हैं जिन्हें रक़म दे कर आप किसी भी किताब पर काम करवा सकते हैं तो रक़म का इंतजाम फरमा दें और अगर ये भी नहीं कर सकते तो आपकी फरमाइश हम तक आ चुकी है, अगर हम से हो सका तो जरूर हम उस पर काम करेंगे और ना कर सके तो माजऱत ख्वाह हैं, हमने अपनी मजबूरी बयान कर दी है। 


एक बात यह कह कर इस तहरीर को मुकम्मल करना चाहता हूं के अवामे अहले सुन्नत ऐसे तामीरी कामों के लिए अपना माल खर्च नहीं करना चाहती। अकसरियत का हाल यह है कि वह इन कामों के लिए दो कदम पीछे रहते हैं और यहीं बात आ जाए जलसे, उर्स, लंगर वगैरह की तो चार कदम आगे दिखाई देते हैं और लाखों करोड़ों को सौ दो सौ की तरह उड़ा देते हैं। एक तकरीर करने वाला 10-15 तकरीरें कर के, एक नात ख्वाह कुछ नातें पढ़कर और नक़ीब वगैरह हंसी मज़ाक कर के अवाम से बड़ी बड़ी रकम ले जाते हैं, तामीरी काम करने वाले पूरी उम्र अपील करते रह जाते हैं पर गिने चुने लोग आगे आते हैं और फिर काम होता तो है पर कैसे होता है यह करने वाले ही जानते हैं जैसे "क़ब्र का ह़की़की़ हाल मुर्दा जानता है" 


अ़ब्दे मुस्तफ़ा ऑफ़िशियल

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