एक दिन इमाम इब्ने जरीर रहीमहुल्लाह ने अपने शागिर्दों से फरमाया कि अगर मै क़ुरान की तफसीर लिखूँ तो तुम पढ़ोगे?
शागिर्दों ने कहा कि कितनी बड़ी तफसीर होगी!
फरमाने लगे कि 30,000 (तीस हज़ार) अवराक़ (पन्नों) पर मुश्तमिल होगी!
शागिर्द कहने लगे कि इतनी लम्बी तफसीर पढ़ने के लिये इतनी लम्बी उम्र कहां से लायेंगे?
फिर इमाम इब्ने जरीर रहीमहुल्लाह ने तीन हज़ार अवराक़ पर मुश्तमिल तफसीर लिखी (अल्लाहु अकबर)
(متاع وقت اور کاروان علم، ص184 بہ حوالہ علم اور علما کی اہمیت، ص20، شیخ الحدیث والتفسیر مفتی محمد قاسم قادری حفظہ اللہ، مکتبہ اہل سنت پاکستان)
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
Post a Comment
Leave Your Precious Comment Here