डरो खुदा से होश करो कुछ मकरो रिया से काम ना लो,
या इस्लाम पर चलना सीखो , या इस्लाम का नाम ना लो।
मौजूदा ज़माने में मुसलमानों को अपना ईमान और अक़ीदा बचाना बहुत मुश्किल हो गया है। ईमान के चोर अपनी चालबाज़ों और फरेबकारों के ज़रिये भोले भाले मुसलमानो की आख़िरत बर्बाद करने में कोई कसर बाकी नही छोड़ रहे है।
ऐसे में ज़रूरी है कि हमें उलमा ए हक़ की तरफ रुजू करना चाहिए ताकि हम गुमराह फिरक़ों की फरेबकारियो से आगाह हो सकें और अपने ईमान और अक़ीदे की हिफाज़त कर सकें।
अभी कुछ दिनों पहले मकल बनाम "इस्लाहे समाज की बुनियादी बातें" नज़र से गुज़रा। जिसको "आलमीन एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी बरेली" की जानिब से शाया किया था। पढ़ कर बहुत हैरत हुई कि आज के नाम निहाद मुसलमानों को क्या हो गया है जो काफिरों के क़दमो में गिरे जा रहे हैं। जिन लोगों के साथ इस्लाम मुहब्बत करने को हराम क़रार देता है उन्ही को अपना भाई बता कर मुसलमानों को उनसे मुहब्बत करने का हाथ बढ़ाया जा रहा है और शरीअते इस्लामिया को मज़रूह किया जा रहा है।
काफ़िर की मौत से भी डरता हो जिसका दिल,
कौन कहता है उसे कि मोमिन को मौत मर।
उस मकाले में सूरह निसा की पहली आयत का हवाला देते हुए ज़ाहिर किया गया कि "सारे इंसान आपस मे भाई-भाई हैं, चाहे वो किसी भी धर्म के हों लिहाज़ा हमें किसी से नफरत नहीं करना चाहिए।"
क़ुरआन पाक के आप तमाम तराज़िम व तफ़्सीर पढ़ लें लेकिन आपको इस आयत का ये मतलब नही मिलेगा लेकिन अफसोस सद अफसोस काफिरों और मुशरिकों को अपना भाई बनाने के लिए ये लोग इस हद तक गुज़र गये कि मआज़'अल्लाह इन्होंने क़ुरआन पर झूट बांधा और क़ुरआन पर झूट का मतलब इन्होंने अल्लाह पर झूट बांधा।
इरशादे रब्बानी है:
فَمَنۡ اَظۡلَمُ مِمَّنِ افۡتَرٰی عَلَی اللّٰہِ کَذِبًا اَوۡ کَذَّبَ بِاٰیٰتِہٖ
(سورۂ اعراف، 37)
"इस से बढ़ कर ज़ालिम कौन जिसने अल्लाह पर झूट बांधा या उसकी आयतें झुटलाये।"
( सूरह अ'अ़राफ़, 37)
क़ुरआन मजीद से कुछ आयात पेश कर रहे है जिन्हें पढ़ कर आप का ज़हन बिल्कुल साफ हो जाएगा कि अल्लाह ने हमें क्या करने का हुक्म दिया है और हम क्या कर रहे है और नाम निहाद मुसलमानों का शक़ भी दूर हो जायेगा। इंशा अल्लाह
(1) मुसलमान मुसलमान भाई-भाई है। (सूरह हज़रात:10)
(2) मुसलमान काफिरों को अपने दोस्त न बना लें, मुसलमान के सिवा जो ऐसा करेगा उसे अल्लाह से कुछ इलाक़ा न रहा।
(सूरह आले इमरान:28)
(3) ऐ ईमान वालों! अपने बाप और अपने भाइयों को दोस्त न समझो अगर वो ईमान पर कुफ्र पसंद करें और तुम में से जो कोई उनसे दोस्ती करे।
(सूरह तोबा:23)
(4) ऐ ईमान वालों! जिन्होंने तुम्हारे दीन को हँसी खेल बना लिया है वो जो तुमसे पहले किताब दे गये (यहूदो नसारा) और काफ़िर उनमे से किसी को अपना दोस्त न बनाओ। अल्लाह से डरते रहो अगर ईमान रखते हो
(सूरह माइदा:57)
(5) ज़रूर तुम मसलमानों का सब से बढ़ कर दुश्मन यहूदियों और मुशरिकों को पाओगे।
(सूरह माइदा:82)
मज़कूरह आयात से हमें पता चल गया कि काफिरों और मुशरिकों से दोस्ती करना कैसा है अल्लाह ने यह तक फरमाया कि जो कोई उनसे दोस्ती करेगा तो अल्लाह से उसका कुछ इलाक़ा नही यानी वो सीधा जहन्नम रसीद हो जाएगा। और तुम्हारे बाप और भाई भी ईमान और कुफ्र को सिर्फ पसंद करे तो उनसे भी दोस्ती न निभाओ। उन्हें भी दूध में से मक्खी की तरह निकल कर फेंक दो। और फरमाया काफिरों ने तुम्हारे दीन का हंसी खेल बना लिया है तो तुम कैसे उन्हें भाई या दोस्त बना सकते हो और अगर तुम ईमान वाले होगे, अल्लाह से डरते होगे तो हरगिज़ उन्हें दोस्त नही बनाओगे।
अल्लाह त'आला ने मुसलमानों का सबसे बड़ा दुश्मन यहूदियो और मुशरिकों को बताया। हम जिस मुल्क़ में रहे रहे है इसमें तादाद के हिसाब से मुशरिक ज्यादा हैं इसलिए हमारे सब से बढ़ कर दुश्मन मुशरिक हैं। अफसोस आज नाम निहाद मुसलमान अल्लाह के फरमान को भूल कर मुशरिकों के तलवे चाटते नज़र आ रहे है। और साथ दोस्ती निभाते नज़र आ रहे हैं। क्या इसीलिये तुम्हें मुसलमान बनाया गया था कि तुम दुनिया में आ कर काफिरो मुशरिकों से मुहब्बत और उल्फत का दर्स दो। आज तुमने अल्लाह और उसके रसूल नबी -ए- करीम ﷺ को नाराज़ किया है। तभी मुसलमान दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। आज मुसलमान हर जगह मुसीबतो में नज़र आ रहे है सिर्फ इसलिए कि तुम अपने दीन को छोड़ कर कुफ्र में इज़्ज़त तलाश करने लग गए हो। काफिरों से मुहब्बत का पाठ पढ़ने वाले अपनी आख़िरत का जनाज़ा ना निकालें। और हाँ अगर उन्हें कुफ्र पसंद है तो इस्लाम का नाम ना लें और न ऐसे मकाले छाप कर मुसलमानों को काफिरों से मुहब्बत करने का दर्स दें। इज़्ज़त अल्लाह के हाथ में है और तुम काफिरों से इज़्ज़त की भीक मांगते हो।
इरशादे रब्बानी है:
वो जो मुसलमानों को छोड़ कर काफिरों को दोस्त बनाते हैं क्या उनके पास इज़्ज़त ढूंढते है? तो इज़्ज़त तो सारी अल्लाह के लिये है।
ना ले काफिरों से मदद कोई सुन्नी
सुलह कुली फ़ितने मिटा ताज वाले
हमारा दीन हमें हर किसी से प्यार मुहब्बत करने की इजाज़त नहीं देता क्योंकि जैसा हमारे लिए खाने पीने की हदें बनी हुई हैं कि ये हलाल है ये हराम है ऐसे ही दोस्ती और दुश्मनी की भी हदें है कि ये दोस्ती हराम है और ये हलाल।
काफिरों से दोस्ती निभाने वालों के लिए सजा:
इरशादे रब्बानी है:
لَا تَرۡکَنُوۡۤا اِلَی الَّذِیۡنَ ظَلَمُوۡا فَتَمَسَّکُمُ النَّار
और ज़ालिमों की तरफ न झुको कि तुम्हें आग छुयेगी।
(सूरह हूद:113)
मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी रहमतुल्लाह अलैह इस आयत की तफ़्सीर में फरमाते है :
हरगिज़ माइल न होना उन बदबख्त काफिरों की तरफ जो दुनिया जहाँ में खाली रहा। यानी क़ौली और अमली मुहब्बत तो दरकिनार, उन की तारीफ का दिल मे ख्याल तक ना आने पाये, ना उनके किसी अमल से खुश होना ना दीन के मुक़ाबले कभी किसी मुआमले में किसी काफिर की इताअत करना, ना काफिरों और बदकारों की मजलिसों, सोहबतों में बैठना। इनमे से जो काम भी किया जाये तो माइलन (यानी काफिरों की तरफ झुकना) पाया गया। लिहाज़ा ए मुसलमानों! अगर तुम बाज़ न आये तो अल्लाह और उसके रसूल अलैहिस्सलाम की मुहब्बत तुम से मिट जाएगी। उसका अंजाम क्या होगा तुम को जहन्नम की आग भड़कती हुई छुयेगी औए उसका छूना भी बड़ा अज़ाब है। ये तो सिर्फ माइलन ज़ालिम की सजा है तो अंदाज़ा लगाओ कि ज़ालिम की सजा क्या होगी!
मुसलमान कौन?
इरशादे रब्बानी है:
1) فَلَا وَ رَبِّکَ لَا یُؤۡمِنُوۡنَ حَتّٰی یُحَکِّمُوۡکَ فِیۡمَا شَجَرَ بَیۡنَہُمۡ ثُمَّ لَا یَجِدُوۡا فِیۡۤ اَنۡفُسِہِمۡ حَرَجًا مِّمَّا قَضَیۡتَ وَ یُسَلِّمُوۡا تَسۡلِیۡمًا
तो ए महबूब! तुम्हारे रब की क़सम वो मुसलमान न होगा जब तक कि अपने आपस के झगड़े में तुम्हें हाकिम ना बनाये। फिर जो कुछ तुम हुक्म फ़रमा दो अपने दिलों में इस से रुकावट ना बने और उसे मान ले।
(सूरह निसा:65)
यानी मुसलमान वही है जो अपने दीनी और दुनियावी मुआमलों में हुज़ूर अलैहिस्सलाम के हुक्म को माने। जैसे हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फरमाया : ऐसा करे अपनी तरफ से दीन में तावीलें ना करे।
(2) لَا تَجِدُ قَوۡمًا یُّؤۡمِنُوۡنَ بِاللّٰہِ وَ الۡیَوۡمِ الۡاٰخِرِ یُوَآدُّوۡنَ مَنۡ حَآدَّ اللّٰہَ وَ رَسُوۡلَہٗ وَ لَوۡ کَانُوۡۤا اٰبَآءَہُمۡ اَوۡ اَبۡنَآءَہُمۡ اَوۡ اِخۡوَانَہُمۡ اَوۡ عَشِیۡرَتَہُمۡ ؕ اُولٰٓئِکَ کَتَبَ فِیۡ قُلُوۡبِہِمُ الۡاِیۡمَانَ وَ اَیَّدَہُمۡ بِرُوۡحٍ مِّنۡہ
यानी मुसलमान वही है जो अल्लाह और उसके रसूल अलैहिस्सलाम से मुखालिफत करने वाले को अपना दुश्मन जाने। चाहे वो उसके बाप या किसी दोस्त या भाई या रिश्तेदार ही क्यों न हो।
3) یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا مَنۡ یَّرۡتَدَّ مِنۡکُمۡ عَنۡ دِیۡنِہٖ فَسَوۡفَ یَاۡتِی اللّٰہُ بِقَوۡمٍ یُّحِبُّہُمۡ وَ یُحِبُّوۡنَہٗۤ ۙ اَذِلَّۃٍ عَلَی الۡمُؤۡمِنِیۡنَ اَعِزَّۃٍ عَلَی الۡکٰفِرِیۡنَ
ऐ ईमान वालों! तुम में जो कोई अपने दीन से फिरेगा (यानी मुर्तद हो जाएगा) तो अनक़रीब अल्लाह ऐसे लोग लायेगा कि वो अल्लाह के प्यारे और अल्लाह उनका प्यारा, मुसलमानो पर नरम और काफिरों पर सख्त।
(सूरह माइदा :54)
यानी मुसलमानों की पहचान ये है कि वो अपने मुसलमान भाई के लिए नरम होते हैं, काफिरों के लिए सख्त होते हैं।
अल्लाह ता'अला हमें काफिरों, बदमज़हबो, गुमराहों, ज़ालिमों की मुहब्बत से बचाये और मुसलमानों से अच्छे अख़लाक़ से पेश आने की तौफ़ीक़ अता फरमाये। आमीन।
अहकर मुहम्मद हस्सान रज़ा राइनी
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