(पार्ट 1)
हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद वकारुद्दिन कादरी रज़वी अलैहिर्रहमा की बारगाह मे सवाल किया गया के एक शख़्स ने ख़्वाब देखा जिस मे नबीय्ये करीम ﷺ ने उस से फरमाया के तुम अगर पकिस्तान मे मेरे मेज़बान बन जाओ तो मैं पकिस्तान मे कुछ दिनो के लिए रुक सकता हू, उस शख़्स ने एक रिसाले मे यही ख़्वाब बयान करते हुए कहा के हुज़ूर ﷺ ने पकिस्तान मे मुझे अपना मुस्तकील मेज़बान मुकर्रर कर दिया है, इस जुमले पर कुछ लोग ऐतराज़ करते है और इसे शान -ए- रिसालत मे तौहीन बताते है लेहाज़ा आप से दरख़्वास्त है के शरियत की रौशनी मे फ़तवा सादिर फरमाएं के क्या शख़्स -ए- मज़कूर किसी शरई जुर्म का मुर्तकीब हुआ है या नही?
वकार -ए- मिल्लत अलैहिर्रहमा जवाब मे लिखते हैं के ताहीरुल कादरी का ये ख़्वाब नवाये वक्त लाहौर, तक्बीर और दीगर रसाईल मे छपा है।
हकीकत ये है के ख्वाब इंसान के इख्तेयार मे नही और इन्सान ख़्वाब मे अजीबो गरीब ऊमूर भी देखता है मगर अपनी फ़ज़ीलत के लिए किसी ख़्वाब को छापना या बयान करना, ये इन्सान का इख्तेयारी फे'ल है लिहाज़ा ताहिरूल कादरी का ख़्वाब बयान करते हुए ये कहना के हुज़ूर ﷺ ने पकिस्तान मे मुझे अपना मुस्तकील मेज़बान मुकर्रर कर दिया है और वापसी के टिकट का भी मुतालबा किया है और बहुत सी बातें बयान की जिन मे हुज़ूर ﷺ के मोहताज होने और ताहीरुल कादरी से मदद तलब करने और एक उम्मती के मुकाबले मे नबी की मुहताजी का इज़हार होता है लिहाज़ा ये तौहीन -ए- नबी ﷺ है और तौहीन करने वालो की जो सज़ा है ताहीरुल कादरी उस सज़ा का मुस्तहिक है।
(ملخصاً: وقار الفتاوی، ج1، ص324، 325)
अब्दे मुस्तफ़ा
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