इमाम शयबी रहीमहुल्लाहु त'आला के बारे में अम्र बिन अबी ज़ाइदह कहते हैं कि किसी सवाल के जवाब में इमाम शयबी से ज़्यादा मैने किसी को भी कसरत से यह कहते हुये नहीं सुना कि मुझे मालूम नहीं। यानी इमाम शयबी अक्सर सवालों के जवाब में ये कहते थे कि "मुझे मालूम नहीं"।
(دارمی بہ حوالہ انباء الحی، مترجم، ص269)
ये कहना कितना मुश्किल है कि मुझे नहीं मालूम या मै नहीं जानता! अगर दो चार लोगों के बीच किसी आलिम को ये कहना पड़ जाये तो क्या होगा? माना कि ये कहने में झिझक महसूस होगी लेकिन भलाई इसी में है कि गलत बयानी का सहारा लेने के बजाए कह दिया जाये कि "मुझे मालूम नहीं"।
अ़ब्दे मुस्तफा
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