हज़रते अल्लामा मौलाना सैय्यद मुहम्मद मदनी अशरफी जीलानी लिखते हैं :
रसूल -ए- करीम ﷺ को चाहना ईमान है, और सबसे ज़्यादा चाहना कमाल -ए- ईमान है।
ये एक मन्सूस हक़ीक़त है जो हर तरह के शुकूको शुबहात से बाला तर है।
ये भी एक अजीब इत्तिफाक़ है कि "अब्जद" के हिसाब से "ईमान" का जो अदद है, बिल्कुल वही अदद "हुब्बे मुहम्मद" ﷺ का भी है।
ईमान का अदद एक सौ दो (102) है और यही अदद "हुब्बे मुहम्मद" ﷺ का भी है।
ते इत्तिफाक़ भी क़ाबिल -ए- दीद है कि जो अदद कुफ्र का है, बिल्कुल वही अदद "हिज्र-ए- मुहम्मद" का भी है।
कुफ्र का अदद है तीन सौ (300) और हिज्र -ए- मुहम्मद" का भी यही अदद है......,
अल गर्ज़ नबी की मुहब्बत ही ईमान है और ईमान ही नबी की मुहब्बत है।
(ملتقطاً: کتاب "یایھا الذین آمنوا" پر تبصرہ، ج1، ص12)
अल्लाह त'आला हमें हक़ीक़ी "हुब्बे मुहम्मद" ﷺ अता फरमाए।
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
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