एक बुज़ुर्ग के पास एक औरत अपने बच्चे को ले कर आयी और कहने लगी : इस बच्चे को गुड़ खाने से मना फरमा दें।
बुज़ुर्ग ने कहा कि वो उस बच्चे को दूसरे दिन लेकर आये।
जब वो औरत दूसरे दिन बच्चे को लेकर आयी तो बुज़ुर्ग ने बच्चे से फरमाया : बेटा, गुड़ मत खाया करो.........,
बच्चे की माँ बोली : हज़रत ये नसीहत तो आप कल भी कर सकते थे (फिर दूसरे दिन क्यों बुलाया?)
बुज़ुर्ग फरमाने लगे : कल ऐसा करना नामुमकिन था क्योंकि कल मैने खुद गुड़ खाया हुआ था!
(انظر: آدابِ استاد و شاگرد، ص33)
दूसरों को नसीहत के फूल बांटने से पहले हमें खुद को देखना चाहिये कि हमने कितनी बातों पर अमल किया है अगर हम अमल के बाद दूसरों को नेकियों की दावत देंगे तो हमारी दावत क़बूल होती हुई नज़र आयेगी।
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
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