आशिक की ज़कात

हज़रते अबू बकर शिबली अलैहिर्रहमा से किसी ने ज़कात का निसाब पूछा। 
आप ने फरमाया कि फिक़्ह का मस'अला पूछ रहे हो या इश्क़ की बात कर रहे हो?

उस बन्दे ने कहा कि दोनो तरह इरशाद फरमा दें।

आप ने फरमाया कि शरीअ़त की ज़कात अढ़ाई फी सद (2.5%) है, जब कि इश्क़ की ज़कात सारे का सारा माल और उस के साथ साथ जान का नज़राना पेश करने से अदा होती है।

उस बन्दे ने कहा कि इश्क़ की ज़कात की क्या दलील है?
आप ने फरमाया की इस की दलील ये है कि सैय्यिदुना सिद्दीक़ - ए- अकबर रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने अपना सारा माल नबीय्ये करीम ﷺ की खिदमत में पेश कर दिया और अपनी बेटी सैय्यिदा आइशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु त'आला अन्हा नज़राने के तौर पर पेश कर दी।

(مکتوبات یحییٰ منیری، ص34 بہ حوالہ ضرب حیدری، ص51) 

अ़ब्दे मुस्तफ़ा

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