किताबें जमा करें

आप अगरचे आलम नहीं या किताबें पढ़ नहीं पाते, फिर भी किताबें जमा करें। लोग अपनी औलाद के लिए माल कमाते हैं फिर उसे जमा करते हैं, बड़े आलीशान घर बनाते हैं हालाँकि इस क़दर उन्हें ज़रूरत नहीं होती लेकिन चाहते हैं कि हमारी नसलें इस से फ़ायदा उठाएं। इसी तरह किताबों को भी अपने घरों में जमा करें। किताबें अगर घर में होंगी तो पढ़ी जाएँगी। किताबों की मौजूदगी कई जहतों से फ़ाइदामंद है

हर मौज़ू पर, हर ज़बान में किताबें मंगवाईं। किताबों की तलाश में रहीं। अपने बच्चों को देनी किताबें पढ़ने का ज़हन दें। शुरू से ही मुताले की आदत डालें। इस से क़ौम में एक इन्क़िलाब आ सकता है

देखा जाता है कि अक्सर लोगों ने सही से दस बीस किताबें भी पढ़ी नहीं होतीं। इसी वजह से ना इलम होता है और ना शऊर; फ़िक्र भी अच्छी नहीं होती क्यों कि मुताले से ही फ़िक्र की भी तामीर होती है

हमें कम अज़ कम रोज़ाना चालीस सफ़े पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। उसे हम "चालीसवां का नाम देते हैं। अब आप रोज़ाना चालीसवां करें। ये एक बेहतरीन आग़ाज़ होगा। क्या आप तैयार हैं चालीसवां करने के लिए? अगर हाँ तो फ़ौरन किताबों का इंतिख़ाब करें और रोज़ाना चालीस सफ़े पढ़ें। आईए इस "मिशन चालीसवां को फ़रोग़ दें और दीन में एक अच्छे काम का आग़ाज़ करें

अबद मुस्तफ़ा

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