हज़रते सलमान फारसी रदिअल्लाहु त'आला अन्हु का निकाह है.......,
बारात में आपके दोस्त अहबाब भी दुल्हन के घर चले.......,
घर पहुँचे तो आप रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने इनसे फरमाया :
"अल्लाह त'आला आप लोगों को जज़ा -ए- खैर अता फरमाए, अब आप लोग लौट जायें"
और घर के अंदर ना जाने दिया जिस तरह के बेवकूफ लोग अपने दोस्तों को ज़ौजा के घर दाखिल कर लेते हैं।
जब आप रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने घर खूब सजा धजा देखा तो फरमाने लगे कि तुम्हारे घर को बुखार आ गया है या काबा शरीफ यहाँ मुन्तक़िल हो गया है?
अहले खाना कहा कि ऐसा नहीं है,
फिर आप रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने दरवाज़े पर लटके पर्दे के सिवा सारे पर्दे उतरवा दिये फिर अंदर दाखिल हुये और वहाँ बहुत सारा सामान देखा तो पूछा कि इतना समान किस लिये है?
घर में मौजूद लोगों ने कहा कि ये आपके और आपकी ज़ौजा के लिये है।
आपने फरमाया : मुझे मेरे खलील मुहम्मद ﷺ ने ज़्यादा मालो दौलत जमा करने की नहीं बल्कि इस बात की नसीहत फरमायी थी कि तुम्हारे पास दुनियावी माल सिर्फ इतना हो जितना मुसाफिर का ज़ादे राह होता है।
फिर आप ने वहाँ एक खादिम को देखा तो पूछा कि ये किस के लिये है?
घर वालों ने कहा कि ये आप की और आप की अहलिया की खिदमत के लिये है।
आप ने फरमाया : मुझे मेरे खलील ﷺ ने खादिम रखने की नसीहत नहीं फरमायी बल्कि सिर्फ उसे रोकने का फरमाया जिस से मैं निकाह करूँ और फरमाया कि अगर तुम ने (अपने सुसराल वालों से) मज़ीद कुछ लिया तो तुम्हारी औरतें तुम्हारी ना फरमान हो जायेंगी और इसका गुनाह खाविन्द (हसबेण्ड) पर होगा और औरतों के गुनाह में भी कोई कमी नहीं होगी!
फिर आप रदिअल्लाहु त'आला अन्हु ने वहाँ मौजूद औरतों से फरमाया कि तुम सब यहाँ से जाओगी या यूँ ही मेरे और मेरी बीवी के दरमियान आड़ बनी रहोगी? वो बोलीं कि हम चली जायेंगी।
जब आप अपनी बीवी के पास गये तो फरमाया : जो मैं कहूँगा मानोगी?
बीवी बोली : जी हाँ! मै आप की इता'अत करूँगी।
फिर आप ने फरमाया : मुझे मेरे खलील ﷺ ने नसीहत फरमायी है कि जब अपनी बीवी के पास जाओ तो उसके साथ मिल कर अल्लाह त'आला की इबादत करो।
फिर दोनो मियाँ बीवी उठे और जब तक हो सका अल्लाह त'आला की इबादत में मसरूफ रहे, उसके बाद हक़ -ए- ज़ौजियत अदा किया।
(ملخصاً و ملتقطاً: حلیة الاولیاء و طبقات الاصفیاء، اردو ترجمہ بہ نام اللہ والوں کی باتیں، ج1، ص348، 349، ط مکتبة المدینة کراچی، س1434ھ)
काश कि हम भी अपने निकाह कें दुनिया की रंगीनियों को छोड़कर सुन्नत -ए- मुस्तफ़ा की सादगी को अपनायें,
अल्लाह त'आला हमें इस की तौफ़ीक़ अता फरमाये।
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
Post a Comment
Leave Your Precious Comment Here